QR कोड पर सुप्रीम कोर्ट की ‘नो स्टॉप’- यूपी सरकार को राहत!

अजमल शाह
अजमल शाह

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 25 जून 2025 को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में निर्देश दिया गया था कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों, होटलों और ढाबों पर QR कोड और मालिक की जानकारी प्रदर्शित की जाए। इसका मकसद — सुरक्षा और पारदर्शिता

लेकिन जैसे ही यह आदेश आया, शिक्षाविद अपूर्वानंद और अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि यह आदेश “धार्मिक और जातिगत पहचान” की प्रोफाइलिंग जैसा है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: रोक नहीं, सिर्फ कागज दिखाओ!

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने साफ कहा:

“हमें बताया गया है कि आज कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है। इसलिए हम इस समय सिर्फ इतना निर्देश दे सकते हैं कि सभी होटल मालिक वैध लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट प्रदर्शित करें।”

कोर्ट ने QR कोड हटाने या धार्मिक पहचान के मुद्दे पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की

क्या यह निजता का उल्लंघन है?

याचिका में दावा किया गया कि QR कोड लगाना सिर्फ एक तकनीकी मामला नहीं, बल्कि इसमें लोगों की धार्मिक और सामाजिक पहचान उजागर होती है — जो निजता के अधिकार का हनन है।

पिछले वर्ष कोर्ट ने इसी प्रकार के निर्देशों पर स्टे लगाया था जब राज्यों ने ढाबों के मालिकों और कर्मचारियों के नाम तक सार्वजनिक करने को कहा था।

सरकार का पक्ष क्या है?

उत्तर प्रदेश सरकार का कहना था कि QR कोड व्यवस्था से यह सुनिश्चित होगा कि:

  • सभी दुकानें और होटल पंजीकृत और वैध रूप से संचालन में हैं

  • यात्रा मार्ग की सुरक्षा सुनिश्चित हो

  • ज़रूरत पड़ने पर प्रशासन को मालिक की जानकारी तुरंत मिले

राजनीतिक माहौल में ‘भक्ति’ बनाम ‘प्रोफाइलिंग’ बहस

इस आदेश को लेकर सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बहस गर्म है।

  • समर्थक कह रहे हैं – “सुरक्षा के लिए कदम है”

  • विरोधी कह रहे हैं – “धर्म देखकर जांच क्यों?”

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी इस विवाद के मूल मुद्दों पर सुनवाई को टाल दिया है, लेकिन भविष्य में यह याचिका फिर से सुर्खियां बटोर सकती है।

अब आगे क्या?

कांवड़ यात्रा तो खत्म हो गई, लेकिन QR कोड की बहस अभी जारी रहेगी। आने वाले हफ्तों में जब यह याचिका फिर से लिस्ट होगी, तब अदालत इस पर विस्तार से सुनवाई कर सकती है — खासकर निजता, प्रोफाइलिंग और धार्मिक स्वतंत्रता के पहलुओं पर।

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